भारत एक कृषि प्रधान देश है, और धान (चावल) यहां की प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है। दुनिया में भारत का धान की खेती में दूसरा स्थान है। पहले स्थान में हमारा पड़ोसी देश चीन हैं।
देश की 60% से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, और उनमें भी एक बड़ी संख्या धान की खेती में लगी हुई है। भारत की आधी से ज्यादा आबादी चावल ही खाती हैं, विशेष रूप से पूर्वी भारत, असम, बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में किसानों की जीवनरेखा है।
धान की खेती की श्री विधि:
धान की खेती ऐसे स्थान पर की जाती हैं जहाँ पर पानी अत्याधिक मात्रा में हो, लेकिन बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के कारण यह संसाधन सीमित होते जा रहे हैं और पारंपरिक तकनीकों से की जा रही खेती के चलते धान की उत्पादकता कम होती जा रही है। लेकिन “श्री विधि” (SRI – System of Rice Intensification) से यह सभी समस्या दूर हो सकती हैं, क्योंकि इस विधि से धान की पैदावार बढ़ती है और इसमें पानी की भी ज्यादा जरूरत नहीं होती।
भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा श्री विधि को बढ़ावा देने हेतु चलाई गई योजना है –
“श्री विधि के क्षेत्र विस्तार से धान की उत्पादकता वर्धन योजना”।
श्री विधि क्या है?
SRI (System of Rice Intensification) एक ऐसी विधि है, जिसमें बीज, पानी और उर्वरक का कम उपयोग करके भी किसान अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है। यह विधि पारंपरिक तरीके से एकदम अलग है,
आइए जानते है इसकी मुख्य विशेषताएं जो कि निम्नलिखित हैं:
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श्री विधि की विशेषताएँ:
- 8 दिन या 12 दिन के पौधों की रोपाई से भी धान की धान की फसल में वृद्धि की जा सकती हैं।
- एकल पौधा प्रति स्थान पर रोपना
- पौधों के बीच उचित दूरी (25×25 सेमी)
- कम जल उपयोग – पूरी बाढ़ नहीं, सिर्फ नमी बनाए रखना
- जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग
- साप्ताहिक निराई-गुड़ाई (Cono weeder से)
- जैविक विधियों से कीट और रोग प्रबंधन
- बहुत ही कम खाद उर्वरक एवं पानी की जरूरत होती हैं।
- इस विधि से कांसे ज्यादा आते हैं जिससे पौधों में कांसे और जड़े ज्यादा पनपती जिससे कि धान की फसल विषम परिस्थितियों में भी टिकी रहती हैं।
- इस विधि से फसल रोपण की लागत कम आती हैं।
योजना का उद्देश्य
“श्री विधि के क्षेत्र विस्तार से धान की उत्पादकता वर्धन योजना” का उद्देश्य है:
- धान की उत्पादकता में वृद्धि करना
- जल और उर्वरक की खपत कम करना
- जैविक खेती को बढ़ावा देना
- किसानों की आय को दोगुना करना।
- इस पद्धति से फ़सलों में कीटों और रोगों का डर कम रहता है।
- लागत में कमी लाना।
- खरपतवार नियंत्रण।
- कम दिनों की नर्सरी का इस्तेमाल करना।
योजना का कार्यान्वयन (Implementation Strategy)
- लक्षित क्षेत्र
दोस्तों भारत के 8 राज्य – बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश (पूर्व), पश्चिम बंगाल, असम और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों को शामिल किया गया है।
- प्रशिक्षण और प्रदर्शन:
- किसानों को SRI तकनीक पर कार्यशाला तैयार कर के दी जा रही हैं, डेमो फील्ड और मॉडल प्लॉट के माध्यम से भी किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), जिला कृषि अधिकारी, और ATMA संस्थाओं की भी अहम भागीदारी है।
- सब्सिडी
बीज, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक दवाओं पर 50-75% तक सब्सिडी मिल रही हैं।
- डिजिटल निगरानी:
दोस्तों पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती में हमारे किसान भाइयों को अपने खेतों में रात दिन अपनी फ़सलों की देखभाल करनी पड़ती थी लेकिन जैसे-जैसे हमारे देश में भी तकनीकों का इस्तेमाल होने लगा है हमारे देश के किसान भाई भी अपनी फ़सलों को अपने-अपने घरों से भी देख सकते हैं और उनकी देखभाल कर सकते हैं। उसके लिए आप
- ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे आप अपने क्षेत्र का सर्वेक्षण कर सकते है।
- जिन्होंने e-KYC करवा रखी है उन किसानों का डेटा अपलोड किया जाता है।
वैज्ञानिक लाभ:
- कम बीज की आवश्यकता होती हैं।
- जल संरक्षण
- मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार
- पौधों की मजबूती आती हैं।
- रोपाई जल्दी हो सकती है और अधिक उपज प्राप्त की जा सकती हैं।
- खरपतवार में नियंत्रण होता है।
- पोषक तत्वों का बेहतर उपयोग प्रयोग किया जा सकता है।
- पर्यावरण में गैस उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे मौसम परिवर्तन में सुधार आ सकता है।
किसानों के अनुभव (कहानी आधारित उदाहरण)
रामवृक्ष यादव, बलिया (उत्तर प्रदेश):
“रामवृक्ष यादव” पहले पारंपरिक तरीके से खेती करते थे, जिससे 20 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज होती थी। लेकिन जब कृषि अधिकारी ने उन्हें श्री विधि के बारे में बताया और प्रशिक्षण दिया, तो उन्होंने एक एकड़ में इस तरह की विधि को प्रयोग करने की सोची जिसके परिणाम हैरान कर देने वाला था, उन्होंने अपने खेत में एक एकड़ में 33 क्विंटल उपज प्राप्त की जिसमें उनका कम खर्च हुआ और अधिक मुनाफा अधिक।”
2023-2025 तक इस योजना का प्रभाव।
- यह विधि 7 लाख हेक्टेयर में लागू हुई।
- लगभग 18 लाख किसान लाभान्वित हुए।
- 30% जल बचत, 40% उर्वरक बचत और 50% अधिक उत्पादन दर्ज किया गया।
- 2025 तक इस योजना में 12 लाख हेक्टेयर के विस्तार का लक्ष्य रखा गया है।
चुनौतियाँ
- किसानों में जागरूकता की कमी।
- प्रारंभ में प्रशिक्षण और प्रयास की आवश्यकता।
- यांत्रिक उपकरणों की उपलब्धता कम होती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी मार्गदर्शन का अभाव।
- इस विधि में रासायनिक खाद का प्रयोग न करके जैविक खाद के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है लेकिन इसके सीमित स्रोत हैं।
आर्थिक लाभ
- कम लागत और अधिक उत्पादन के चलते किसानों की आय में 60% तक वृद्धि।
- जैविक उत्पादन होने के कारण बेहतर फसल होती हैं, जिससे बाजार में मूल्य अधिक मिल सकता है।
- केंद्र सरकार के MSP से अधिक दरों पर धान की बिक्री संभव।
पर्यावरणीय प्रभाव
- जल की बचत करके भूमिगत जल स्तर में सुधार लाया जा सकता हैं।
- रासायनिक उर्वरकों का कम प्रयोग करने से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है।
- कार्बन उत्सर्जन में कमी से जलवायु के अनुकूल खेती की जा सकती हैं।
भविष्य की योजना (2025–2027)
- हर जिले में 1000+ मॉडल श्री विधि खेत हो।
- SRI तकनीक को ज्वार, गेहूं और मक्का जैसी फसलों पर भी लागू करने का परीक्षण चल रहा हैं।
- कृषि ऐप से किसानों को डिजिटल मार्गदर्शन भी मिल रहा हैं।
- महिलाओं को भी किसानी के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
निष्कर्ष
“श्री विधि के क्षेत्र विस्तार से धान की उत्पादकता वर्धन योजना” भारतीय कृषि के लिए एक क्रांतिकारी पहल है। यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाती है, बल्कि जल संरक्षण, जैविक खेती और पर्यावरण संतुलन की दिशा में भी एक मजबूत कदम है। यदि इस योजना को सही तरीके से लागू किया जाए और किसानों को निरंतर मार्गदर्शन मिलता रहे, तो यह भारत को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
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