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कृषि भूमि के उपलब्धता, जलवायु, मौसम, मिट्टी और पानी की उपलब्धता आदि अनेक कारकों पर निर्भर करती है। इसलिए कृषि के प्रकार भूमि के अनुसार विभाजित किए जा सकते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ मुख्य कृषि के प्रकार:
भूमि के उपलब्धता के आधार पर कृषि के प्रकार:
निम्नलिखित कुछ प्रमुख कृषि के प्रकार है जिन्हें अलग-अलग विशेषताओं के साथ विभाजित किया गया है।
गहन कृषि (Intensive Farming)
गहन कृषि, जिसे इंटेंसिव खेती भी कहा जाता है, एक विशेष कृषि के प्रकार की विधि है जिसमें अधिक मात्रा में खेती की जाती है ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके और भविष्य में बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सामग्री की पर्याप्त आपूर्ति हो सके। इसका उद्देश्य ज्यादा मुनाफे कम जमीन और संसाधनों में प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना होता है।
गहन कृषि की विशेषताएं:
- उत्पादन में वृद्धि: गहन कृषि के अनुसार, उपज एक दिए गए जमीन क्षेत्र में अधिक मात्रा में होती है जिससे कृषि उत्पादों का उत्पादन बढ़ता है।
- तकनीकी प्रगति: इस कृषि विधि में तकनीकी प्रगति का उपयोग किया जाता है जैसे कि सीधे खेत जोतने वाली मशीनें, कीटनाशकों का उपयोग, समय पर बीज बोना जाना आदि।
- समय और उपार्जन की बचत: इस खेती के तरीके में उपज को जल्दी तैयार करके उपार्जन की बचत होती है, जिससे किसानों को समय और प्रोत्साहन मिलता है।
- समर्थन तंत्र: गहन कृषि में कृषि उत्पादों के समर्थन तंत्र को विकसित करने का प्रयास किया जाता है, जिससे किसानों को बेहतर तकनीकी ज्ञान और सामग्री मिलती है।
इस तरीके से, गहन कृषि एक उच्च उत्पादकता वाली खेती विधि है जो खाद्य सुरक्षा और आवासीय विकास को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से साबित हो सकती है।
विस्तृत खेती Extensive Farming
विस्तृत खेती, जिसे अंग्रेजी में “Extensive Farming” कहा जाता है, एक कृषि के प्रकार व्यवस्था है जिसमें खेती का विस्तार करने के लिए बड़े और विशाल क्षेत्रों का उपयोग किया जाता है। इसमें फसलों की प्रजातियां जोड़ी जाती हैं, जो एक समान और बड़े खेती क्षेत्र में उगाई जाती हैं। इसके खेती व्यवस्था में भूमि का आकार बड़ा होता है जिससे खेती के विकास के लिए विशेष महत्वपूर्ण साधनों की आवश्यकता होती है।
विस्तृत खेती की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं:
- बड़े खेत: विस्तृत खेती में बड़े समृद्धि सम्पन्न भूमि का उपयोग किया जाता है। यह भूमि खेती के लिए अधिक उपयुक्त होती है क्योंकि इसमें फसलों के उत्पादन के लिए अधिक स्थान होता है।
- विशाल प्रजातियां: इस खेती प्रकार में एक समान प्रजाति की बजाय बड़े अंतरालों में फसलों की उगाई जाती है। इससे फसलों के प्रति कीट, रोग और कुशलता संबंधी समस्याएं कम होती हैं।
- कम वित्तीय लागत: विस्तृत खेती में अधिक भूमि उपयोग किया जाता है जिससे प्रति भूमि पर लागत कम हो जाती है। इससे किसानों को अधिक लाभ होता है और खेती की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
- मशीनों का उपयोग: विस्तृत खेती में खेती के लिए मशीनों का व्यापक उपयोग होता है, जो काम को तेज़ी से और सरल बनाता है। इससे काम की गति तेज़ होती है और उत्पादकता बढ़ती है।
- भूमि की खाई-खुराक: विस्तृत खेती में भूमि को अधिक खाई-खुराक की जाती है ताकि फसलों को प्राकृतिक खाद्य सामग्री से भरपूर मिले और उनका उत्पादन बेहतर हो।
- प्राकृतिक संतुलन: विस्तृत खेती में भूमि का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए ध्यान दिया जाता है ताकि उसमें पोषक तत्वों की कमी न हो।
विस्तृत खेती के इन विशेषताओं से यह एक व्यावसायिक तथा व्यापक खेती प्रणाली है, जो खेती के उत्पादन और उपजाऊता में सुधार कर सकती है। यह भूमि के संबलता को बढ़ाकर किसानों को आर्थिक रूप से सुस्त बना सकती है और उन्हें अधिक विकास के अवसर प्रदान कर सकती है। विस्तृत खेती अधिक उत्पादकता और विकास के लिए बेहतर उपाय हो सकती है, परन्तु पर्यावरणीय प्रभावों के साथ समझदारी से उपयोग करना महत्वपूर्ण है।
सीढ़ी दार खेती (Terrace farming)
सीढ़ी दार खेती (Terrace Farming) एक कृषि के प्रकार की विधि है जिसमें शृंगारीय ढालों को निर्मित करके कृषि का अभ्यास किया जाता है। यह विशेष रूप से बेघर और ऊँची जगहों पर जलवायु और भूमि के विशेषताओं के कारण किया जाता है।
- सीढ़ी दार खेती की विशेषताएं इसमें जल निर्भरता को बढ़ाने, मिट्टी की उद्दीपन को रोकने, जल स्रोत को रोकने, भूमि की उत्पादकता को बढ़ाने और जैविक उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है।
- सीढ़ी दार खेती का प्रकार और तकनीक भूमि के यूँकान और ढालों के आधार पर अलग-अलग होते हैं। पहले, ढालें बनाई जाती हैं, जिसमें कच्ची मिट्टी, रेत और पत्थरों का उपयोग होता है। इन ढालों पर कृषि खेती के लिए जमीन तैयार की जाती है।
- सीढ़ी दार खेती से भारतीय कृषि तथा पर्यावरण में सुधार होता है। इसके माध्यम से भूमि की संरचना सुधारी जा सकती है और जल संसाधन का संचय करने में मदद मिलती है। सीढ़ी दार खेती भूमि के नुकसान को कम करती है और जलवायु परिवर्तन के सामर्थ्य में सुधार करती है।
- इस तरीके से, सीढ़ी दार खेती भूमि के बेहतर उपयोग, जल संचयन, और सुस्त संवेदनशील कृषि प्रथाओं के प्रोत्साहन के साथ-साथ पर्यावरण के साथ अनुकूल विकास की दिशा में प्रमुख योगदान करती है।
कार्बनिक खेती (Organic Farming)
कार्बनिक खेती एक प्राकृतिक खेती प्रणाली है जिसमें उत्पादन विधि में केमिकल खाद्य पदार्थों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी स्वास्थ्य और पृथ्वी के पर्यावरण को सुरक्षित रखना है। यह एक समृद्धिशील खेती प्रणाली होती है जो उत्पादक और पर्यावरण दोनों के लिए लाभदायक होती है। कार्बनिक खेती, कृषि के प्रकार का मुख्य स्रोत है।
कार्बनिक खेती की विशेषताएँ:
- कीटनाशकों का अनुप्रयोग नहीं किया जाता, जिससे फसलों में रहने वाले कीट प्रभावी तरीके से नियंत्रित किए जाते हैं।
- जैविक खाद्य पदार्थों का उपयोग करके मिट्टी को पुनर्जीवित किया जाता है जिससे उर्वरक स्तर सुधारता है।
- प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली फसलों की गुणवत्ता उच्च होती है, जो स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करती है।
- भूमि के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाती है, जिससे दुर्भाग्यशाली परिणामों का सामना किया जा सकता है।
- बागवानी और पशुपालन में उच्च अनुकूलन के कारण स्थानीय अर्थव्यवस्था को समर्थन किया जाता है।
कार्बनिक खेती में उत्पादित खाद्य पदार्थों की मांग विश्व भर में बढ़ती जा रही है क्योंकि लोग स्वस्थ और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं और पर्यावरण के साथ सहयोगी खेती प्रणालियों की खोज कर रहे हैं।
स्थानांतरणशील खेती (shifting Cultivation)
स्थानांतरणशील खेती, जिसे अंग्रेजी में “Shifting Cultivation” या “Swidden Agriculture” कहा जाता है, यह एक कृषि के प्रकार की पद्धति है जो विभिन्न क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से अपनाई जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य जमीन के उपयोग के लिए अलग-अलग भूमिभागों को प्रयोग करना होता है, ताकि जमीन के पौधों को संतुलित रूप से प्रयोग किया जा सके और उसकी फसलें अच्छे उत्पादकता से उत्पन्न हो सकें।
स्थानांतरणशील खेती की विशेषताएँ:
- इस खेती पद्धति में, किसान एक खेत को कुछ समय तक जोतता है और जब उसमें जमीन की उपयुक्तता कम हो जाती है, तो वह नए भूमिभाग में अपनी खेती को स्थानांतरित करता है। उस जगह पर, उपज नहीं होने से जमीन को कुछ समय के लिए विश्राम करने दिया जाता है ताकि उसकी उपयुक्तता पुनः प्राप्त हो सके।
- यह पद्धति कई बार वन्य जमीन का भी उपयोग करती है, जो बाद में पुनर्गमन के लिए छोड़ दी जाती है। धरती की ज़मीन विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय जोनों में ज्यादा प्रचलित है।
- हालांकि, इस पद्धति का विकासीकरण, जंगलों के कटाव और जनसंख्या वृद्धि के कारण, पर्याप्त जमीन न होने के कारण इसकी चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। धीरे-धीरे कुछ क्षेत्रों में इसे परंपरागत खेती पद्धतियों से बदलते हुए सामान्य खेती के पक्ष पर आना देखा गया है।
समोच्च खेती (Contour Farming)
समोच्च खेती या “contour farming” एक ऐसी खेती पद्धति है जिसमें भू-धरातल पर लाइनों की मदद से खेत के चट्टानी भागों के बराबर यानि समानता स्तर पर खेती की जाती है। यह तरीका मुख्य रूप से जल वायु प्रबंधन के लिए प्रभावी होता है और वायु, जल, मिट्टी की नुकसान प्रवृत्तियों को कम करने में मदद करता है। इससे वर्षा के समय बाढ़ और भूस्खलन के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है और जमीन की उपयोगिता में सुधार होता है।
समोच्च खेती या “contour farming” की विशेषताएँ:
- यह है कि यह भू-धरातल पर चट्टानों के साथ समानता स्तर पर खेती को संभव बनाती है।
- इस तकनीक से जल वायु प्रबंधन सुगमता से होता है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन के खतरे को कम किया जा सकता है।
- यह विधि जल अभियांत्रिकी का उपयोग करती है, जिससे जल वापसी होती है और जमीन की उपजाऊता में सुधार होता है।
- इससे खेती का यील्ड बढ़ता है और कृषकों को अधिक आय और जल संचय मिलता है। इसके फलस्वरूप, कृषि उत्पादन में वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलती है।
निर्वहन खेती (Subsistence Farming)
निर्वहन खेती या सबसिस्टेंस फार्मिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसान अपने परिवार के खाने के लिए स्वयं अपनी जमीन पर खेती करते हैं और उससे अपने गरीबी और रोजगार की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं।
इसमें उन्हें विशेषतः उच्च तकनीकी उपकरणों का या बड़ी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए वे स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हैं।
निर्वहन खेती की विशेषताएँ:
- इस खेती प्रणाली में किसान अपने खेतों में विभिन्न फसलें उगाकर खुद और अपने परिवार का पेट भरते हैं। इसे उनके परिवार के सदस्यों की आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने का एक साधन माना जाता है। यह खेती प्रणाली मुख्य रूप से गांवों और छोटे शहरों में प्रचलित होती है, जहां अधिकांश जनसंख्या खेती के लिए निर्भर होती है।
- निर्वहन खेती की एक विशेषता यह है कि इसमें बाह्य बाजार के साथ व्यापार न करके, किसान अपनी खेती का उत्पादन प्राथमिक रूप से अपने परिवार के उपभोग और उसके बाद उचित मात्रा में बिक्री के लिए उपयोग करते हैं।
- इससे उन्हें बाजार के उथल-पुथल से दूर रहने का भी आराम मिलता है। इस प्रकार, निर्वहन खेती गरीबी के साथ-साथ स्वावलंबीता को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है जो किसानों को स्वतंत्रता और सम्मान का एहसास कराता है।
ले खेती (Lay Farming)
ले खेती (Lay Farming) यह एक कृषि के प्रकार विधि है जिसमें किसान अपनी भूमि को विभाजित करता है और उसमें अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाता है। इस विधि में खेत की पूरी जमीन को एक ही प्रकार की फसल के लिए उपयुक्त बनाया जाता है जिससे किसान को फसल की देखभाल में सुविधा होती है।
ले खेती की विशेषताएँ:
- विविधता: इस विधि में किसान अपनी जमीन पर विभिन्न प्रकार की फसलें उगा सकता है जो उस भूभाग के मौसम और मिट्टी के अनुसार उचित होती हैं।
- प्रबंधन: ले खेती के अंतर्गत, फसलों के प्रबंधन को सरल बनाने के लिए समय, प्रयास और संसाधनों का उचित वितरण किया जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी: इस विधि में प्रौद्योगिकी का उपयोग फसलों की उचित देखभाल और समय पर फसल के संगठन में किया जा सकता है।
- जल संचय: ले खेती के अंतर्गत, जल संचय के उपायों का प्रयोग किया जा सकता है जिससे जल की बचत होती है और समृद्धि बनी रहती है। ले खेती को अपनाकर किसान विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन करके अपनी आय को बढ़ा सकते हैं और समृद्ध खेती का साथ दे सकते हैं।
स्थानबद्ध खेती (Placement Agriculture)
स्थानबद्ध खेती (placement agriculture) एक कृषि के प्रकार है जो विशेष तकनीक का प्रयोग करती है ताकि उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त समय पर उपयुक्त मात्रा में फसलों को उगाया जा सके। यह खेती प्रणाली किसानों को जलवायु, मिट्टी और सम्पत्ति आदि के अनुसार उचित फसलों का चयन करने में मदद करती है।
स्थानबद्ध खेती की एक विशेषता है:
- यह भू-जल और जलवायु के अनुसार अधिक समृद्धि देती है। इसमें बिजली और पानी के इस्तेमाल का समय भी ध्यान में रखा जाता है ताकि उपजाऊ बिजली और जल संसाधनों का समय पर उपयोग हो सके।
- इस तकनीक के अंतर्गत, सिंचाई व्यवस्था और कृषि मशीनरी का ध्यान रखा जाता है, जो किसानों को समय पर समृद्ध फसल उपजाने में मदद करते हैं। इससे खेती का उत्पादन बढ़ता है और किसानों की आय भी बढ़ जाती है।
- स्थानबद्ध खेती अनुकूल और स्थानीय जलवायु के अनुसार फसलों के संयंत्रन और उनके विकास का समय नियंत्रण करने में सहायक होती है। इससे खेती में नुकसान का कम होना संभव होता है और किसानों को अधिक मुनाफा होता है।
- समर्थन कृषि विशेषज्ञों के माध्यम से स्थानबद्ध खेती के उपयोग की जांच और अध्ययन के लिए अधिक प्रोत्साहन देना भी आवश्यक है। इससे खेती क्षेत्र में तकनीकी उन्नति होगी और देश की खेती उद्यमिता बढ़ेगी।
व्यापारिक रोपण खेती (Commercial Plantation Agriculture)
व्यापारिक रोपण खेती, जिसे व्यापारिक बागवानी भी कहा जाता है, विशेषतः वनस्पतियों, फल-फूल या औषधीय पौधों के व्यवसायिक उत्पादन के लिए एक विशेष प्रकार की खेती है। इसमें एक ही प्रकार के पौधे को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है और उनका उत्पादन विक्रय के लिए किया जाता है। इस कृषि प्रथा में विशाल भूभागों पर वन्य वनस्पतियों के स्थानीय भारतीय पौधे के साथ विदेशी पौधों का भी उत्पादन होता है।
व्यापारिक रोपण खेती की एक मुख्य विशेषता
- इसमें समय के साथ उचित प्रबंधन और संगठन के साथ पौधों के समृद्ध उत्पादन का समर्थन किया जाता है। इसमें बिजनेस स्ट्रैटेजी, वित्तीय प्रबंधन, बाजार विश्लेषण और विपणन के जरिए उत्पादन को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत की जाती है।
- व्यापारिक रोपण खेती आम तौर पर भूमि, जल, जलवायु, और वन्यजीवन से संबंधित पर्याप्त ज्ञान और विज्ञान का उपयोग करती है। इससे वन्य प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाता है और बिजनेस के साथी के रूप में स्थानीय समुदायों को रोजगार के अवसर प्रदान करने में मदद की जाती है।
- इसके अलावा, व्यापारिक रोपण खेती स्थानीय परंपरागत विधियों और ज्ञान के साथ मौजूदा तकनीकी उन्नति को सम्मिलित करती है जो एक समृद्ध और सामर्थ्यशाली कृषि उद्यमी समुदाय का विकास करता हैI
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ट्रक खेती (truck farming)
ट्रक खेती, जिसे “truck farming” भी कहते हैं, वह एक प्रकार की सब्जी उत्पादन प्रणाली है जो उपजाऊ और अधिक मूल्यवान फल-सब्जियों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करती है। इस प्रकार की खेती में, छोटे भूमियों पर अलग-अलग प्रकार के फल, सब्जियाँ और फूलों की उत्पादन की जाती है, जिसे बाजारों और विक्रेताओं को सप्लाई करने के लिए बाजार में बेचा जाता है।
ट्रक खेती की विशेषताएं
- विविधता – इसमें अलग-अलग प्रकार के फसलों की खेती की जाती है जो व्यापक बाजार की मांग को पूरा करती है। समय-बचाव – यह छोटे भूमि के उपयोग के कारण श्रमसंबंधी खर्च को कम करती है और उत्पादकता को बढ़ाती है।
- सूक्ष्म विनियंत्रण – छोटे क्षेत्रों पर उत्पादन करने के कारण ट्रक खेती आसानी से संचालित की जा सकती है।
- फसल की विनियमित परिपक्वता – ट्रक खेती में अनुकूल वातावरण बनाए रखने के लिए कृषि तकनीकियों का नियमित उपयोग किया जाता है जो उत्पादन को बेहतर बनाता है।
- इसके लिए विशेष रूप से फसल की सिंचाई, उर्वरकों का प्रयोग और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।
ट्रक खेती के कारण एक्सेसिबिलिटी, अधिकतम उत्पादन, और अधिक विकल्पों के कारण यह आधुनिक खेती के रूप में विकसित हुई है। यह छोटे किसानों के लिए आर्थिक रूप से उपयुक्त होती है और बढ़ती बजट व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।
डेयरी खेती (Dairy Farming)
डेयरी खेती, जिसे दूध उत्पादन या दूध पालन भी कहा जाता है, एक व्यापक पशुपालन व्यवसाय है जो गाय, भैंस और अन्य दूध देने वाले पशुओं को पालकर दूध उत्पादन करता है। यह खेती व्यवसाय देशभर में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे न केवल दूध उत्पादन होता है, बल्कि लोगों को रोजगार का अवसर भी प्राप्त होता है।
डेयरी खेती की विशेषताएं:
- वित्तीय स्थिरता: यह खेती व्यवसाय वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है, क्योंकि दूध का व्यापार लाभदायक होता है और उत्पादन से आय प्राप्त होती है।
- ग्रामीण विकास: डेयरी खेती ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करती है और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देती है।
- पोषण संतुलन: दूध उत्पादन भोजन में पोषण संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है, क्योंकि दूध विटामिन, प्रोटीन, और कैल्शियम से भरपूर होता है।
- कृषि उत्पादों का उपयोग: डेयरी खेती में उत्पन्न खाद्य पदार्थों को कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जा सकता है जो फसलों की उत्पादनता को बढ़ाता है।
- पर्यावरण संरक्षण: यह खेती विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी मदद करती है, क्योंकि वनस्पतियों के अधिकांश उपयोग होते हैं, जिससे घरेलू श्रृंगार उत्पादों के लिए वनस्पति कटाई कम होती है।
यह व्यवसाय उच्च पोषक वैल्यू वाले दूध की उत्पादनता सुनिश्चित करने में मदद करता है और विभिन्न उत्पादों को उत्पन्न करते समय समानता बनाए रखता है। इससे न केवल किसानों को आर्थिक रूप से स्थायी रोजगार का अवसर मिलता है, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले दूध का स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी होता है। डेयरी खेती, कृषि के प्रकार में प्रमुख योगदान करती है।
बहुफसली सस्यन (Multiple cropping):
बहुफसली सस्यन, जिसे अंग्रेजी में ‘multiple cropping’ कहा जाता है, एक कृषि प्रक्रिया है जिसमें किसान एक ही कृषि भूमि पर एक से अधिक मौसमिक संक्रमण (ऋतुएं) के दौरान विभिन्न प्रकार के फसलों को उगाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भूमि का उचित उपयोग करके उत्पादकता बढ़ाना होता है।
बहुफसली सस्यन की विशेषताएं:
- उत्पादकता वृद्धि: इसके द्वारा किसान एक समय में एक से अधिक फसलें उगा सकते हैं, जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- भूमि का उचित उपयोग: विभिन्न फसलों के संयोजन से भूमि का उचित उपयोग होता है, जिससे उसकी खेती की जा सकती है।
- जल संरक्षण: बहुफसली सस्यन में विभिन्न फसलें अलग-अलग जल स्त्रोतों का उपयोग करती हैं, जो जल संरक्षण में मदद करता है।
- बीजों की विविधता: इसमें विभिन्न प्रकार के बीजों का उपयोग होता है, जो मिश्रण खेती के रूप में जाना जाता है।
इस तरह, बहुफसली सस्यन कृषि प्रक्रिया भूमि के समुचित उपयोग से उत्पादकता में वृद्धि करने और किसानों को अधिक आय प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है।
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मिश्रित सस्यन (Mixed Cropping)
मिश्रित सस्यन (Mixed Cropping) एक कृषि प्रक्रिया है जिसमें एक ही खेत में एक से अधिक प्रकार के फसलों को साथ मिलाकर उगाने की विधि है। यह प्रक्रिया पारंपरिक तरीके से विभिन्न फसलों को समकलीन तारीके से उगाने की प्रेरक तकनीक मानी जाती है।
मिश्रित सस्यन विशेषताएँ:
- प्राकृतिक संतुलन: मिश्रित सस्यन में विभिन्न प्रकार की फसलें एक साथ उगाई जाती हैं, जो प्राकृतिक रूप से भूमि को संतुलित रखता है और विभिन्न पोषक तत्वों का उपयोग करके फसलों के प्रभावशाली विकास को प्रोत्साहित करता है।
- कीट-रोग नियंत्रण: एक से अधिक प्रकार की फसलों को साथ मिलाने से कीट-रोगों का प्रबंधन संभव होता है क्योंकि यदि एक प्रकार की फसल में कीट-रोग हो जाता है, तो दूसरी फसल उससे प्रभावित नहीं होती।
- ज़मीन का उपयोग: मिश्रित सस्यन में खेत का उपयोग बढ़ जाता है क्योंकि वहां एक ही समय पर एक से अधिक फसलें उगती हैं। इससे भूमि का अधिकतम उपयोग होता है और किसान को अधिक उत्पादन मिलता है।
- समय की बचत: एक से अधिक फसलों को साथ मिलाकर उगाने से किसान को समय की बचत होती है क्योंकि वह अलग-अलग समय पर अलग-अलग फसलें उगाने की ज़रूरत नहीं होती।
- आर्थिक सुविधा: मिश्रित सस्यन एक प्रकार के प्रदोषित फसलों की तुलना में अधिक आर्थिक सुविधा प्रदान कर सकती है। इससे किसान की आय वृद्धि होती है और वह अपने परिवार को भलीभांति संतुष्टि प्रदान कर सकता है।
सह-फसली पद्धतियां (Intercropping Systems)
सह-फसली पद्धतियां, कृषि उत्पादन में विभिन्न फसलों को एक साथ उगाने वाली प्रक्रिया है। यह अन्य पद्धतियों से अलग है, जो एक समय में केवल एक ही फसल का उत्पादन करती हैं। इसके तहत एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को बारीकी से मिलाकर उगाने का अभियान होता है।
सह-फसली पद्धतियों के कई विशेषताएं
पहले तो, इससे फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है और किसानों को अधिक उत्पादन मिलता है। दूसरे, यह किसानों की आय को सुरक्षित करती है, क्योंकि यदि किसी एक फसल में किसी कारणवश नुकसान हो जाए, तो दूसरी फसल संभल जाती है। तीसरे, यह मिट्टी को पोषण से भर देती है, क्योंकि अलग-अलग फसलें अलग-अलग पोषक तत्वों को उपभोग करती हैं।
- इसके अलावा, सह-फसली उत्पादन करने से कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है, जिससे पर्यावरण को भी फायदा मिलता है।
- यह जल और खेती के संसाधनों का उपयोग भी बेहतर ढंग से करती है।
- इस पद्धति में फसलों के अच्छे संबंध बनते हैं, जो एक दूसरे के विकास को बढ़ावा देते हैं और खेती के प्रणालीकरण को सुगम बनाते हैं।
- सह-फसली पद्धतियां एक समृद्ध और समरसता पूर्ण कृषि प्रथा हैं जो किसानों को समृद्धि और लाभप्रद फसलों का उत्पादन करने में सहायता करती हैं।
दियारा खेती (Recession farming):
दियारा खेती या रिसेशन फार्मिंग एक तकनीक है जो कृषि में आर्थिक संकट या रिसेशन के समय में उपजाऊ फसलें उगाने के लिए उपयोगी होती है। यह तकनीक उचित योजनाबद्धता और विशेष तौर पर योग्यता के साथ संचयी खेती को प्रोत्साहित करती है।
दियारा कृषि के प्रकार की विशेषताएं:
- पहली विशेषता है कम खर्च और संसाधनों के साथ उचित उत्पादन करना। इसमें खेती के लिए अधिक समय और मेहनत नहीं चाहिए जिससे किसान कम खर्च के साथ अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
- द्वितीय विशेषता है कम जल संसाधनों का उपयोग करना। दियारा खेती में पानी की बचत के लिए कृषि तकनीकियों का उपयोग किया जाता है जैसे की ट्रिकलर सिंचाई और बूंद बांधने की तकनीक।
- तृतीय विशेषता है स्थानीय उपाजू फसलों के चयन का प्रचुरता से किया जाना। दियारा खेती में वही फसलें उगाई जाती हैं जो किसी क्षेत्र में आसानी से उगा सकती हैं और जिन्हें वहां की मौसमी और मिट्टी की स्थिति पर उपजाऊता दिखाया गया हो।
- यह तकनीक किसानों को आर्थिक संकट समय में सुरक्षित रखती है और उन्हें अधिक मुनाफा कमाने में मदद करती है। इसके साथ ही, दियारा खेती जलवायु परिवर्तन के साथ लड़ने के लिए भी एक सुसंगत विकल्प होती है।
अवरोध-परत खेती (Mulch Farming) :
अवरोध-परत खेती, जिसे अंग्रेजी में “Mulch Farming” कहा जाता है, एक प्राकृतिक खेती पद्धति है जो खेती के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। इस पद्धति में फसलों के नीचे पौधों की संरचना को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न प्रकार की खेती बचाव के उपकरण (मलच) बिछाए जाते हैं, जो पानी के व्यय को कम करते हैं और मृदा की गरमी को साँकृतिक रूप से बनाए रखते हैं।
अवरोध-परत खेती की विशेषताएं:
- जल संचयन: मलच बिछाने से पानी का अपचय कम होता है, जिससे सिंचाई की खपत घटती है और जल संरचना में सुधार होता है।
- मृदा का सुरक्षा: मलच रूपी परत से मृदा की नाविक गतिविधियों को कम किया जाता है और भूमि को प्राकृतिक आकर्षकता से बचाया जाता है।
- उपजाऊ बागवानी: अवरोध-परत खेती से पौधों को अधिक पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे उपजाऊ बागवानी में सुधार होता है।
- कीटनाशकों से रक्षा: मलच लगाने से कीटनाशकों का उपयोग कम होता है, जिससे पर्यावरण को संरक्षित किया जाता है।
इस प्रकार, अवरोध-परत खेती एक संरक्षित और स्थायी खेती पद्धति है जो समृद्धि को बढ़ाने में मदद करती है और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करती है।
तैरती हुईं खेती (Floating Farming):
तैरती हुईं खेती एक नई प्रौद्योगिकी है जिसमें कृषि के लिए जल पर तैरते वनों या बार्जर को उपयोग किया जाता है। यह तकनीक भूमि की कमी वाले इलाकों में खेती का समाधान प्रदान करती है, जहां वन जलवायु में बनाए जा सकते हैं।
तैरती हुईं खेती की विशेषताएं:
- स्थानीय जलवायु: यह वन जलवायु के अनुकूल होते हुए फसलों के विकास को सुनिश्चित करता है, जो उत्पादकता को बढ़ाता है।
- पानी की बचत: तैरती हुईं खेती में समय-समय पर पानी की उचित इवेंट ने पानी की बचत की देखभाल की जाती है।
- वातावरण का संरक्षण: यह वन जीवन को बढ़ावा देता है और प्राकृतिक जीवन पश्चात्ताप को कम करता है।
- जल्दबाजी की भरमार: इसमें फसलों का उत्पादन संभव होता है, क्योंकि इसमें तनावमुक्त पर्यावरण में प्रतिबद्धता होती है।
तैरती हुईं खेती ने कृषि को एक नई दिशा दी है जो जल-आधारित इलाकों के लिए एक अनुकूल विकल्प है। यह प्रौद्योगिकी साथी उत्पादकता और पर्यावरण संरक्षण के साथ कृषि के क्षेत्र में एक समृद्धि की राह खोलती है।
पट्टीदार खेती (Strip Farming):
पट्टीदार खेती, जिसे अंग्रेजी में “Strip Farming” कहते हैं, एक विशेष प्रकार की खेती प्रणाली है जो खेती के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। इस प्रकार की खेती में, खेत को छोटे-छोटे धरीयों या पट्टियों में बांटा जाता है, जिससे वन्यजीवों के निवास और खेती के मध्य एक स्थायी पार्श्वभूमि के रूप में काम करते हुए प्राकृतिक संतुलन को सुरक्षित रखा जा सकता है।
पट्टीदार खेती की विशेषताएं:
- जल संरचना: यह प्रकार की खेती जल संरचना में सुधार करती है, क्योंकि यह बांटे खेतों में वर्षा के पानी को संक्रमित करने की क्षमता प्रदान करती है।
- पेयजल की रक्षा: पट्टीदार खेती जल स्रोतों को बचाने में मदद करती है जो वन्यजीवों के लिए जीवनमुखी होते हैं।
- भूमि की संरक्षा: इस पद्धति में, भूमि की खराबी को कम किया जा सकता है और भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में मदद मिलती है।
- फसलों का संवेदनशील विकास: पट्टीदार खेती में फसलों को विशेष देखभाल देने की अनुमति होती है, जिससे उनका संवेदनशील विकास हो सकता है।
इस प्रकार से, पट्टीदार खेती खेती के साथ एक संतुलित पर्यावरण सुनिश्चित करती है और खेतीकर्ताओं को बेहतर उत्पादकता और जीवनकर्तव्य का अनुभव करने में मदद करती है।
इस प्रकार, खेती कई प्रकार से की जाती है और ये प्रकार क्षेत्र, जलवायु, मिट्टी और विशेष फसलों के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ प्रमुख खेती प्रकारों में शामिल हो सकते हैं:
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इसमें धान, गेहूँ, जौ जैसी अन्नविशेष फसलें उगाई जाती हैं। इन्हें खेती का मुख्य स्रोत माना जाता है।
- फल-सब्जी उत्पादन: इसमें फल, सब्जियाँ, फूलों की खेती होती है जैसे कि आम, सेब, टमाटर, गाजर आदि।
- फसलों की खेती: इसमें विशेष फसलें उगाई जाती हैं जो कम जगह में उगाई जा सकती हैं, जैसे कि चाय, कॉफी, काजू, कापस, बादाम आदि।
- खेती और पशुपालन: कुछ किसान अपनी फसलों के साथ पशुपालन भी करते हैं, जैसे कि दूध देने वाले पशुओं को पालतू रखकर दूध उत्पादन करना।
- ऑर्गेनिक खेती: इसमें किसान जीवाश्म और कमिकल्स का नहीं, बल्कि जैविक उर्वरकों का उपयोग करके फसलें उगाते हैं।
- संबंधित खेती: इसमें एक से अधिक फसलों की खेती करके फसलों के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है, जिससे कि जमीन का प्रयोग समझदारी से हो सके।
ये कुछ प्रमुख खेती के प्रकार थे जिन्हें अलग-अलग विशेषताओं के साथ किया जाता है। खेती एक महत्वपूर्ण शैली है जो आम जनता के लिए खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करती है और अर्थव्यवस्था में भी योगदान करती है।
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