दोस्तों आज हम आपको एक ऐसी पौष्टिक सब्जी के बारे मे बताने जा रहे हैं, जिसकी कीमत प्रति किलोग्राम लगभग 1200 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक होती है। और इसकी खेती करके आप लाखो रुपए आराम से कमा सकते है।
शतावरी की खेती
शतावरी (Asparagus racemosus) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जो आयुर्वेद में अपने विविध स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें विशेष रूप से उपयोगी होती हैं और विभिन्न औषधीय उत्पादों में प्रयुक्त होती हैं। यह एक पौष्टिक सब्जी है, जिसकी कीमत प्रति किलोग्राम लगभग 1200 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक होती है।
इसमे विटामिन C, A, E, K, B6, फोलेट, ऑयरन कॉपर, कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर जैसे पोषक तत्व पाए जाते है। शतावरी की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन सकती है, बशर्ते कि इसे सही तकनीकों और देखभाल के साथ किया जाए।
कैसी होनी चाहिए जलवायु और मिट्टी?
दोस्तो शतावरी की सफल खेती के लिए समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है। दिन का तापमान 25-30°C और रात का तापमान 15-20°C इसके विकास के लिए आदर्श है। यह पौधा 600-1000 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है। मिट्टी की बात करें, तो दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी, जिसका पीएच मान 6-8 के बीच हो, शतावरी की खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी की अच्छी जल निकासी और उपजाऊपन फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाते हैं।
कैसे और कब करे शतावरी के बीज की तैयारी और बुवाई?
दोस्तो किसी भी प्रकार की फसल की उपज के लिए सबसे पहले बीज़ का सही चुनाव करना अवश्यक है अगर बीज़ का चुनाव सही नहीं किया गया तो आपकी फसल, पैसा और आपकी मेहनत सब बेकार हो सकती है
शतावरी की खेती बीजों से की जाती है। इसकी बुवाई से पहले, इसके बीजों को 24 घंटे तक गाय के मूत्र में भिगोकर उपचारित करना चाहिए, जिससे मिट्टी जनित रोगों से बचाव हो सके। इसकी बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल माह है।
दोस्तो शतावरी के बीजों को एक निश्चित दूरी 30-40 सेमी चौड़ी क्यारियों में बोया जाता है, जिससे पौधों को पर्याप्त स्थान और पोषक तत्व मिल सकें। प्रति एकड़ भूमि के लिए 400-600 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई के बाद, बीजों को हल्की मिट्टी की परत से ढककर सिंचाई करनी चाहिए।

कैसे करनी चाहिए शतावरी के पौधों की रोपाई?
बुवाई के 40-50 दिनों के बाद, जब पौधे 15-20 सेमी की ऊंचाई प्राप्त कर लें, तब उन्हें मुख्य खेत में रोपित किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे कि मुख्य खेत की जुताई अच्छे से की गई हो ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके। दोस्तो शतावरी की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना आवश्यक है।
उसके बाद पंक्तियों के बीच 1.5-2 मीटर और पौधों के बीच 30-60 सेमी की दूरी रखनी चाहिए, जिससे पौधों को पर्याप्त स्थान मिल सके। दोस्तो शतावरी की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना आवश्यक है, ताकि पौधे नई मिट्टी में अच्छी तरह स्थापित हो सके।
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शतावरी की सिंचाई और जल प्रबंधन कैसा होना चाहिए?
दोस्तो शतावरी की सफल खेती के लिए समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है। शतावरी की फसल को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। जब आप शतावरी की रोपाई कर ले तो उसके बाद पहले महीने में हर 4-6 दिन के अंतराल पर सिंचाई जरूर करनी चाहिए। इसके बाद, मौसम और मिट्टी की नमी के अनुसार करे, लेकिन आप चाहें तो 7-10 दिन के बीच के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है।
दोस्तो आपको शतावरी के फूल आने और उसके बीज बनने के समय का विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इस दौरान नमी की कमी से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और आपकी मेहनत, पैसा और समय सब खराब हो सकता है इसीलिए मिट्टी में नमी का विशेष ध्यान देना चाहिए। दोस्तो मिट्टी में नमी के साथ साथ हमें जल निकासी पर भी ध्यान रखना जरूरी है ताकि मिट्टी में जल जमा ना होने पाए इसीलिए सिंचाई के साथ-साथ जल निकासी की उचित व्यवस्था भी बेहद जरूरी है, ताकि जलजमाव से जड़ों को नुकसान न पहुंचे।
खाद और उर्वरक कितना होना चाहिए?
शतावरी की अच्छी वृद्धि और ज्यादा उत्पादन के लिए संतुलित पोषण आवश्यक है। शतावरी की खेती के लिए खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ 80 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलानी चाहिए और इसके अलावा, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है।
प्रति एकड़ 24 किलोग्राम नाइट्रोजन (52 किलोग्राम यूरिया), 32 किलोग्राम फॉस्फोरस (200 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट) और 40 किलोग्राम पोटाश (66 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) का उपयोग करना चाहिए। दोस्तो नाइट्रोजन को दो भागों में विभाजित करे, जिसमें एक भाग जब शतावरी की रोपाई के समय प्रयोग करना चाहिए और दूसरा भाग उसके 6 महीने बाद इसमे इस्तेमाल करना चाहिए। फॉस्फोरस और पोटाश को रोपाई के समय ही मिट्टी में मिलाना उचित होता है।
खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
शतावरी की खेती में खरपतवार नियंत्रण महत्वपूर्ण है, क्योंकि खरपतवार पौधों से पोषक तत्वों और नमी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व नही पहुंचने देते है, इसलिए पहले वर्ष में, कम से कम 6-8 बार हाथ से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सके।
इसके बाद, आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई जारी रखनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए जैविक विधियों, जैसे मल्चिंग, का उपयोग भी किया जा सकता है, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और खरपतवारों की वृद्धि कम होती है।
रोग और कीट प्रबंधन का तरीका:
शतावरी (Asparagus racemosus) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जो आयुर्वेद में अपने विविध स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें विशेष रूप से उपयोगी होती हैं और विभिन्न औषधीय उत्पादों में प्रयुक्त होती हैं। शतावरी की फसल में कुछ सामान्य रोग और कीट देखे जा सकते हैं:
रोग: पत्तियों पर भूरे धब्बे (प्यूचीनिया एस्पारगी)
नियंत्रण: 1% बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें।
कीट: जड़ें खाने वाले कीट:
नियंत्रण: मिट्टी में जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
रोग और कीटों से बचाव के लिए फसल का नियमित निरीक्षण आवश्यक है। रोगग्रस्त पौधों को तुरंत हटाकर नष्ट करना चाहिए, ताकि संक्रमण फैलने से रोका जा सके।
कटाई और उपज कैसे करनी चाहिए?
शतावरी (Asparagus racemosus) की फसल की कटाई और उपज प्रबंधन में सावधानीपूर्वक योजना और क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है। सही समय पर कटाई, उचित तकनीकों का उपयोग, और फसल के बाद की प्रक्रियाएँ, जैसे सफाई, छंटाई, और भंडारण, फसल की गुणवत्ता और बाजार मूल्य को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कटाई का समय
शतावरी की फसल रोपाई के बाद 16 से 24 महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई का उपयुक्त समय अप्रैल-मई माह होता है, जब पौधों पर लगे हुए बीज पक जाते हैं। इस समय, जड़ों में सक्रिय संघटक की मात्रा अधिक होती है, जिससे औषधीय गुणों में वृद्धि होती है।
कटाई की विधि
शतावरी की फसल की कटाई के दौरान निम्नलिखित चरणों का पालन करना चाहिए:
- मिट्टी की नमी: कटाई से पहले खेत में हल्की सिंचाई करें, जिससे मिट्टी नरम हो जाए और जड़ों की खुदाई में आसानी हो।
- उपकरणों का चयन: कुदाली या फावड़े का उपयोग करके सावधानीपूर्वक जड़ों की खुदाई करें, ध्यान रखें कि जड़ें कटें या छिलें नहीं।
- खुदाई की गहराई: जड़ों की गहराई और फैलाव के अनुसार खुदाई करें, ताकि सभी जड़ें पूरी तरह से निकल जाएं।
- सावधानी: खुदाई के दौरान पौधों को नुकसान न पहुंचाएं और सुनिश्चित करें कि जड़ें मिट्टी में न छूटें।
कटाई के बाद की प्रक्रियाएँ
कटाई के बाद, जड़ों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- सफाई: जड़ों को साफ पानी से धोकर मिट्टी और अन्य अशुद्धियों को हटाएं।
- छंटाई: क्षतिग्रस्त या रोगग्रस्त हिस्सों को काटकर अलग करें।
- छीलना: जड़ों की बाहरी परत को हल्के से छीलें, जिससे सक्रिय संघटक की उपलब्धता बढ़े।
- काटना: जड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटें, जिससे सुखाने में सुविधा हो।
- सुखाना: कटी हुई जड़ों को छायादार और हवादार स्थान पर फैलाकर सुखाएं, जिससे नमी पूरी तरह से निकल जाए।
उपज और भंडारण करने का तरीका:
शतावरी (Asparagus racemosus) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जो आयुर्वेद में अपने विविध स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें विशेष रूप से उपयोगी होती हैं और विभिन्न औषधीय उत्पादों में प्रयुक्त होती हैं। सही कृषि प्रबंधन और वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने पर, प्रति पौधा 5 से 7 किलोग्राम तक गीली जड़ों का उत्पादन संभव है।
सामान्यतः प्रति एकड़ 12 से 14 टन गीली जड़ों की उपज प्राप्त होती है। सुखाने के बाद, जड़ों का वजन लगभग 30-35% रह जाता है। सुखाई हुई जड़ों को साफ और सूखे स्थान पर, नमी रहित कंटेनरों में संग्रहित करें, जिससे उनकी गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहे।
शतावरी की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन सकती है, बशर्ते कि इसे सही तकनीकों और देखभाल के साथ किया जाए। शतावरी की फसल की कटाई और उपज प्रबंधन में उपरोक्त विधियों का पालन करके, किसान उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त कर सकते हैं, जो बाजार में बेहतर मूल्य दिलाने में सहायक होगी।
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